बिहार के बक्सर जेल में ही क्यों बनाए जाते हैं फांसी के फंदे

बक्सर जेल के सुपरिटेंडेंट कहते हैं, “क्योंकि इंडियन फैक्ट्री लॉ के हिसाब से बक्सर सेंट्रल जेल को छोड़ बाकी सभी दूसरी जगहों पर फांसी के फंदे बनाने पर प्रतिबंध है. पूरे भारत में इसके लिए केवल एक ही जगह पर मशीन लगाई गई है और वो सेंट्रल जेल बक्सर में. और ये आज से नहीं बल्कि अंग्रेजों के समय से है.

“पिछले पिछले 10 सालों में देश में जहां कभी भी फांसी हुई है, वहां फांसी का फंदा बनाने के लिए रस्सी बक्सर जेल से ही गई है. चाहे वो वर्ष 2004 में कोलकाता में धनजंय चटर्जी को दी गई फांसी हो या फिर असमल कसाब को पुणे जेल में दी गई फांसी या गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को दी गई फांसी या मुंबई बम धमाकों के दोषी अजमल कसाब और संसद पर हमले के दोषी अफ़जल गुरु को दी गई फांसी सभी फांसियों में इस्तेमाल किए गए फांसी के फंदे बक्सर के सेंट्रल जेल में बनाए गए रस्सी से दी गई. .

कब से बक्सर में बन रही हैं फांसी की रस्सियां
बक्सर में फांसी की रस्सियां 1930 से बनाई जा रही हैं. यहां बनी रस्सी से जब भी फांसी दी गई तो वो कभी फेल नहीं हुई. दरअसल ये जो रस्सी होती है, ये खास तरह की होती है, इसे मनीला रोप या मनीला रस्सी कहते हैं, माना जाता है कि इससे मजबूत रस्सी होती ही नहीं. इसीलिए पुलों को बनाने, भारी बोझों को ढोने और भारी वजन को लटकाने आदि में इसी का इस्तेमाल किया जाता है.

चूंकि ये रस्सी सबसे पहले फिलीपींस के एक पौधे से बनाई गई थी, लिहाजा इसका नाम मनीला रोप या मनीला रस्सी पड़ा. ये खास तरह की गड़ारीदार रस्सी होती है. पानी से इसपर कोई असर नहीं पड़ता बल्कि ये पानी को सोख लेती है. इससे लगाई गई गांठ पुख्ता तरीके से अपनी पकड़ को दमदार बनाकर रखती है.

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लेकिन अंग्रेजों ने मशीन बक्सर में हीं क्यों लगाई?

कहा जाता है कि जेल के करीब गंगा नदी के बहने से वहां से आने वाली आर्द्रता भी इसकी मजबूती और बनावट पर खास असर डालती है. बक्सर का क्लाइमेट भी यहां की रस्सी को बनाती है दमदार
बक्सर जेल में इस तरह की रस्सी बनाने वाले एक्सपर्ट हैं. यहां के कैदियों को भी इसे बनाने का हुनर सिखाया जाता है. यहां के खास बरांदा में इसे बनाने का काम किया जाता है. पहले तो रस्सी बनाने के लिए जे-34 कॉटन यार्न खासतौर पर भटिंडा पंजाब से मंगाया जाता था लेकिन अब इसे गया या पटना से ही प्राइवेट एजेसियां सप्लाई करती हैं.

लेकिन सवाल ये कि आख़िर हर बार फांसी के फंदे बक्सर सेंट्रल जेल में ही क्यों बनते हैं? क्या कहीं और ऐसे फंदे नहीं बनाए जा सकते?

Nirbhaya case update How and Why fansi ka fanda necks noose if made in Buxar Central jail

जेल सुपरिटेंजेंट कहते हैं, ‘ये तो पूरे विश्वास के साथ नहीं बता सकते कि उन्होंने मशीन यहीं क्यों लगाई। मेरी जो समझ है और जो मैंने यहां आकर जाना है, उसके आधार पर इतना जरूर कहूंगा कि यहां के मौसम की इसमें अहम भूमिका है।’

  • ‘बक्सर सेंट्रल जेल गंगा के किनारे है। फांसी का फंदा बनाने वाली रस्सी बहुत मुलायम होती है। उसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत को अधिक नमी की जरूरत होती है। हो सकता है कि गंगा के किनारे होने के कारण ही मशीन यहीं लगाई गई।’
  • ‘हालांकि अब सूत को मुलायम और नम करने की जरूरत नहीं पड़ती। सप्लायर्स रेडिमेड सूत ही सप्लाई करते हैं।’

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कैसे बनता है फांसी का फंदा

SOURCE-Social Media

जेल सुपरिटेंडेंट के अनुसार फांसी का फंदा बनाने के लिए जिस सूत का इस्तेमाल होता है, उसका नाम J34 है। 

  • पहले यह सूत विशेष तौर पर पंजाब से मंगाया जाता था, लेकिन अब सप्लायर्स ही देते हैं।
  • जेल सुपरिटेंडेंट बताते हैं, ‘यह मुख्य रूप से हाथ का काम है। मशीन से केवल धागों को लपेटने का काम होता है। 154 सूत का एक लट बनाया जाता है। छह लट बनते हैं। इन लटों से 7200 धागे या रेशे निकलते हैं। इन सभी धागों को मिलाकर 16 फीट लंबी रस्सी बनती है।’
  • जेलर के मुताबिक फंदा बनाने का अंतिम चरण सबसे महत्वपूर्ण होता है।
  • वो कहते हैं, ‘जब एक बार हम यहां से रस्सी बनाकर भेज देते हैं, तो फिर उसकी फिनिशिंग का काम होता है। इसमें रस्सी को मुलायम और नरम बनाना शामिल है। क्योंकि नियमों के मुताबिक फांसी के फंदे से केवल मौत होनी चाहिए। चोट का एक भी निशान नहीं रहना चाहिए।’

कौन बनाता है फांसी का फंदा

हथकड़ी
जेल का कैदी

बक्सर जेल के कैदी ही इसे बनाने का काम करते हैं।

जेलर सतीश कुमार कहते हैं, ‘फांसी की सजा पाए कैदी विशेष कैदी होते हैं। उनसे कोई काम नहीं कराया जाता। जिन लोगों को फांसी की सजा आजीवन कारावास में बदल चुकी है या जो आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं, वे ही फांसी के फंदे बनाने के काम में लगते हैं।’

इसके लिए बक्सर जेल में कर्मचारियों के पद सृजित हैं। जेलर सतीश कुमार सिंह बताते हैं कि कर्मी फंदा बनाने के लिए कैदियों को केवल निर्देशित करते हैं या प्रशिक्षित करते हैं।

जेल सुपरिटेंजेंट अरोड़ा कहते हैं, ‘ये तो पूरे विश्वास के साथ नहीं बता सकते कि उन्होंने मशीन यहीं क्यों लगाई। मेरी जो समझ है और जो मैंने यहां आकर जाना है, उसके आधार पर इतना जरूर कहूंगा कि यहां के मौसम की इसमें अहम भूमिका है।’

  • ‘बक्सर सेंट्रल जेल गंगा के किनारे है। फांसी का फंदा बनाने वाली रस्सी बहुत मुलायम होती है। उसमें प्रयोग किए जाने वाले सूत को अधिक नमी की जरूरत होती है। हो सकता है कि गंगा के किनारे होने के कारण ही मशीन यहीं लगाई गई।’
  • ‘हालांकि अब सूत को मुलायम और नम करने की जरूरत नहीं पड़ती। सप्लायर्स रेडिमेड सूत ही सप्लाई करते हैं।’

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